
अच्छाई की शुरुआत खुद से होती है:
एक बार की बात है, दस लोग तीर्थ यात्रा पर निकले। वे अध्यात्म का मतलब समझना चाहते थे। पहाड़ी यात्रा थी, अलग-अलग जगहों पर गए, संतों और महात्माओं से मिले, दर्शन किए। जब वापस लौटने लगे, तो बारिश का मौसम शुरू हो चुका था। नदियां उफान पर थीं। एक नदी पार करते समय उन्हें लगा कि उनका एक साथी गायब हो गया है।
दूसरे किनारे पर पहुंचकर उन्होंने गिनती की। हर बार नौ ही निकले। वे बहुत दुखी हो गए, रोने लगे। तभी वहां से एक संत गुजरे। उन्होंने पूछा, “क्या हुआ?” लोगों ने बताया कि उनका एक साथी नदी में बह गया है। संत ने गिनती की और कहा, “तुम पूरे दस हो।” लेकिन वे मानने को तैयार नहीं थे।
फिर एक साथी ने नदी में झांका और अपना चेहरा देखकर चिल्लाया, “यह रहा वह!” दूसरों ने भी झांका, लेकिन वे अपना ही चेहरा देख रहे थे। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि यह उनका अपना प्रतिबिंब है। वे लाश निकालने के लिए लकड़ियां जमाने लगे।
संत ने फिर समझाया, “यह तुम्हारा अपना चेहरा है। तुम पूरे दस हो।” इस बार उन्होंने खुद से गिनती शुरू की और पाया कि वे सच में दस हैं। संत ने कहा, “तुम बाहर ढूंढ रहे हो, लेकिन सब कुछ अंदर है। अपने मन को शुद्ध करो, जिंदगी बदल जाएगी।”
सीख :
यह कहानी हमें सिखाती है कि अच्छाई और सुधार की शुरुआत हमेशा खुद से होती है। हम अक्सर बाहर की दुनिया को बदलने की कोशिश करते हैं, लेकिन असली बदलाव तब आता है जब हम अपने अंदर झांकते हैं। अपने विचारों को शुद्ध करके, अपने कर्मों को सुधारकर, हम अपनी दुनिया को बेहतर बना सकते हैं।
अच्छाई की शुरुआत खुद से करो, क्योंकि तिलक भी दूसरों को लगाने से पहले खुद की उंगली पर लगाना होता है।
Frequently Asked Questions
1. कहानी का मुख्य संदेश क्या है?
Answer: अच्छाई और सुधार की शुरुआत हमेशा खुद से होती है। बाहरी दुनिया को बदलने से पहले अपने अंदर झांकना ज़रूरी है।
2. लोगों ने नदी में क्या देखा?
Answer: उन्होंने अपना ही प्रतिबिंब देखा, लेकिन समझ नहीं पाए कि यह उनका अपना चेहरा है।
3. संत ने क्या सिखाया?
Answer: संत ने सिखाया कि सब कुछ अंदर है। मन को शुद्ध करने से जिंदगी बदल जाती है।
4. अच्छाई की शुरुआत क्यों खुद से करनी चाहिए?
Answer: क्योंकि जब तक हम खुद में सुधार नहीं करेंगे, बाहरी दुनिया को बदलना मुश्किल है।